भारतीय संविधान की अनुसूचियां और उनके विषय ✍🏻

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हाथरस से ग्राउंड रिपोर्ट: कमरे में कैद रहा पीड़ित परिवार, आज भी रसोई में खाना नहीं बन सका; आज आरोपियों के परिवारों के साथ ठाकुरों की महापंचायत

 



  • पीड़िता के परिवार का कहना है कि वो नार्को टेस्ट करवाने के लिए तैयार नहीं हैं, उनका कहना है कि हमने कहीं नहीं देखा कि किसी पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट होता है
  • ठाकुरों का कहना है कि उनके समाज के चार युवकों को झूठा फंसाया जा रहा है और पुलिस और प्रशासन मीडिया और राजनेताओं के दबाव में काम कर रहा है
  • टीवी चैनलों ने अपनी लाइव रिपोर्ट में कहा कि पीड़ित का भाई और मां-बाप अस्थियां उठाने पहुंचे हैं, जबकि पीड़ित के सगे परिवार से वहां कोई नहीं था
  • हाथरस में हुए कथित गैंगरेप के बीस दिन बाद और पीड़ित का शव जलाए जाने के चार दिन बाद अब गांव और परिवार का माहौल बदला हुआ है। शनिवार को दो दिन के बैन के बाद गांव से लॉकडाउन हटा लिया गया और मीडिया को गांव में जाने की अनुमति दे दी गई। कैमरामैन और रिपोर्टर भागते-दौड़ते, हांफते-हांफते जब पीड़िता के घर पहुंचे तो परिजन बात करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं दिखे। अब तक मीडिया से खुलकर बात करता रहा परिवार कुछ असमंजस में, कुछ गुमसुम नजर आया।

    उत्तर प्रदेश के डीजीपी एचसी अवस्थी और अतिरिक्त गृह सचिव अवनीश अवस्थी पीड़ित परिवार से बात करने पहुंचे। पीड़ित की मां ने धीमी आवाज में उन्हें फिर से वही बातें बताईं जो वो बीते चार दिनों से बार-बार दोहराती रही हैं। अवनीश अवस्थी ने अपनी डायरी में बिंदुवार उनकी मांगों को नोट किया और इंसाफ का भरोसा देकर चले गए।

    यूपी सरकार के शीर्ष अधिकारियों के जाने के बाद परिजन से जब मैंने पूछा कि क्या वो संतुष्ट हैं तो पीड़ित की भाभी ने कहा, ‘वो कोई पानी की बौछार नहीं डाल गए कि हम एकदम संतुष्ट हो जाएं। या हम सरकार से भीख नहीं मांग रहे हैं कि इतने पैसे दे दो और हम संतुष्ट हो जाएं। हमने अपने सवाल रखे हैं और हम उनका जवाब चाहते हैं। हमारा सवाल है कि हमें अपनी बेटी का चेहरा क्यों नहीं देखने दिया गया। पुलिस ने शुरू में जांच में लापरवाही क्यों की।’

  • इसके बाद परिजनों ने अपने आप को घर के एक कमरे में बंद कर लिया और ज्यादातर वो वहीं रहे। मीडिया के कैमरे पीड़ित की भाभी को खोजते रहे, लेकिन उन्होंने ज्यादा बात न करते हुए अपनी तबीयत खराब होने की बात कही।

    अब तक पीड़ित की भाभी खुलकर बोल रहीं थीं। दो दिन पहले जब डीएम परिजन को समझा-धमका रहे थे तब भाभी ने ही उनसे नोकझोंक की थी। शनिवार को परिवार थका हुआ, परेशान और बिखरा हुआ नजर आया। परिवार की महिलाओं ने जब रसोई में आकर खाना बनाने की कोशिश की तो मीडिया के कैमरे एक बार फिर उनकी तरफ घूम गए। महिलाएं भीतर चली गईं। एक और दिन रसोई में खाना नहीं बन सका।

    जब से ये घटना हुई है, परिजन की दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है। वे समय पर खाना भी नहीं खा पा रहे हैं। कुछ देर बाद बाहर से खाना मंगवाया और फिर खाया। इस दौरान परिवार के छोटे बच्चे रोते रहे।

    अस्थियों को लेकर असमंजस
    गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर पीड़ित की चिता से शनिवार को अस्थियां उठा ली गईं। एक रेप एक्टीविस्ट पीड़ित के चाचा-चाची और भाभी के भाई को लेकर अस्थियां उठाने पहुंचीं। सगे परिजन के न आने के सवाल पर पीड़िता की भाभी के भाई ने कहा, ‘इंसानियत के नाते मैंने अस्थियां उठाई हैं, क्योंकि यहां कुत्ते आ सकते हैं।'

    रेप एक्टीविस्ट ने ट्विटर पर और टीवी चैनल ने अपनी लाइव रिपोर्ट में लगातार यही कहा कि पीड़ित का भाई और मां-बाप अस्थियां उठाने पहुंचे हैं, जबकि पीड़ित के परिवार से वहां कोई नहीं था। बाद में जब अस्थियां घर के बाहर पहुंची तो पीड़िता के दोनों भाइयों ने अस्थिकलश को छूते हुए कहा कि हम अस्थियां विसर्जित नहीं करेंगे।




  • पीड़ित के परिवार ने एक बार फिर दोहराया कि हमें नहीं पता कि प्रशासन ने आनन-फानन में किसका अंतिम संस्कार किया है। हम तो अपनी बेटी को एक आखिरी बार देख तक नहीं पाए। अस्थियां उठाई जाएं या नहीं, इसे लेकर भी परिवार असमंजस में था। कुछ सदस्यों का मानना था कि अस्थियां उठाई जाएं, कुछ का कहना था कि नहीं। अस्थियां उठाते हुए भी पीड़ित के परिजन ने एक बार फिर से ये बात दोहराई कि उन्हें पैसे या मुआवजे से कोई मतलब नहीं है। वो तो बस अपनी बेटी के लिए इंसाफ चाहते हैं।

    नार्को टेस्ट पर परिजनों ने क्या कहा
    अगर पहले किसी पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट हुआ है तो वो भी करवा लेंगे। हालांकि उनका बार-बार यही कहना था कि वो टेस्ट करवाने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने सवाल किया, हमने कहीं नहीं देखा कि किसी पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट होता है। ऐसा पहली बार देख रहे हैं।

    आज फिर ठाकुरों की महापंचायत
    आसपास के गांवों के ठाकुर समाज ने आज फिर महापंचायत बुलाई है। ठाकुरों का कहना है कि महापंचायत में अभियुक्तों के परिजन अपनी बात सबूतों के साथ रखेंगे और पीड़ित के परिवार को एक्सपोज किया जाएगा। अब इलाके का ठाकुर समाज इस घटना के खिलाफ और तेजी से लामबंद हो रहा है।

    ठाकुरों का कहना है कि उनके समाज के चार युवकों को झूठा फंसाया जा रहा है और पुलिस और प्रशासन मीडिया और राजनेताओं के दबाव में काम कर रहा है। आज भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद को भी पीड़ित के गांव पहुंचना है। इससे वहां पारा और भी बढ़ सकता है।

    गांव के बाहर एक खेत के पास खड़े एक ठाकुर व्यक्ति ने कहा कि मैडम आप जिस तरह से इस मामले को पेश कर रही हैं ये मामला वैसा नहीं है। उसने कहा, ‘इस लड़की के मरने पर गांव में कोई भी दुखी नहीं है। अगर वो सही होती तो लोगों को दुख होता। आपको कोई दुखी दिखा। बस सब चुप हैं। कुछ बोल नहीं रहे। ठीक से जांच कीजिए, ये ऑनर किलिंग का मामला है। परिवार क्यों नार्को टेस्ट नहीं करवा रहा। अगर वो सच्चे हैं तो नार्को टेस्ट करवाएं। सब पता चल जाएगा।’

  • ये व्यक्ति पांच दिन बाद अपने खेतों को पानी देने आया था। उसने कहा, ‘इस मामले ने हमारी दिन-चर्चा को बदल दिया है। लोग परेशान हो गए हैं। हम अपने खेतों को पानी तक नहीं दे पा रहे हैं।’ अब जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, इस मामले को लेकर पीड़ित के गांव और आसपास के इलाके में कई तरह की बातें होने लगी हैं। एक पूर्व विधायक ने इसे ऑनर किलिंग का मामला बता दिया है। तब से ठाकुर समाज यही बात कर रहा है।

    इसी बीच यूपी सरकार ने मामले की जांच अब सीबीआई को सौंप दी है। लेकिन सवाल यही है कि क्या सीबीआई को सुबूत जुटाने का मौका मिल पाएगा। क्राइम सीन पिकनिक स्पॉट सा बन गया है। पुलिस ने भी जांच के शुरुआती दिनों में सबूत जुटाने में लापरवाही की। पीड़ित का मेडिकल टेस्ट ही 22 सितंबर को कराया गया था। उससे पहले पुलिस ने क्या जांच की, इस सवाल पर पुलिस अधिकारी चुप्पी साध लेते हैं। बस यही कहते हैं, ‘हमने सही दिशा में जांच की है, सबूत अदालत में पेश किए जाएंगे।’



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